एक बार एक आदमी सन्तों के पास गया और बोला की महाराज मैं एक -दो बार सत्संग में गया था पर कोई खास बात समझ नहीं आई...
तब सन्तों ने उससे एक सवाल किया. के नल की टोंटी को अगर पूरा खोल दोगे तो तुम उससे पूरा गिलास पानी भर पाओगे. ?
वह आदमी बोला नहीं.
तब सन्त बोले क्यों. ?
वह बोला पानी प्रैशर से आयेगा तो गिलास कभी पूरा नहीं भरेगा.. लेकिन टोंटी को धीरे कर दिया जाये तो धीरे-धीरे वह गिलास भर जायेगा.
तब सन्त बोले यही बात मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ.
की एक-दो बार सत्संग मैं जाने से संसकार नहीं आते बल्कि बार-बार सत्संग में जाने से सन्तो से मिलने से धीरे-धीरे मनुष्य को भक्ति की समझ आती ओर जब उसे भक्ति की समझ आ जाती है तो वह भवसागर से पार हो जाता है..
तब सन्तों ने उससे एक सवाल किया. के नल की टोंटी को अगर पूरा खोल दोगे तो तुम उससे पूरा गिलास पानी भर पाओगे. ?
वह आदमी बोला नहीं.
तब सन्त बोले क्यों. ?
वह बोला पानी प्रैशर से आयेगा तो गिलास कभी पूरा नहीं भरेगा.. लेकिन टोंटी को धीरे कर दिया जाये तो धीरे-धीरे वह गिलास भर जायेगा.
तब सन्त बोले यही बात मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ.
की एक-दो बार सत्संग मैं जाने से संसकार नहीं आते बल्कि बार-बार सत्संग में जाने से सन्तो से मिलने से धीरे-धीरे मनुष्य को भक्ति की समझ आती ओर जब उसे भक्ति की समझ आ जाती है तो वह भवसागर से पार हो जाता है..
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