Sunday, July 24, 2011

महाभारत कालीन है रामगढ़वा का इतिहास (gopalganj)


ABHISHEK GOSWAMI ,भोरे (गोपालगंज): भौगोलिक परिदृश्य हो या प्रचलित मान्यताएं या मौजूदा साक्ष्य हो या वाचिक परंपरा से चली आ रही जनश्रुतियां, सब के सब गोपालगंज के पश्चिमांचल में स्थित भोरे को एक ऐतिहासिक आयाम देते हैं। कहा जाता है कि महाभारत कालीन प्रसिद्ध योद्धा भूरिश्रवा की राजधानी भोरे के रामगढ़वा में थी और यहीं से वह कुरुक्षेत्र के युद्ध में जाते थे। मान्यता है कि भूमिश्रवा के नाम पर ही इस ग्राम का नाम भोरे पड़ा है। यहां के रामगढ़वा में आज भी खुदाई करने पर पतले-पतले कुएं, गिट्टी एवं अन्य धातुओं के टूटे-फूटे बर्तन तथा मूर्तियां मिलती रहती है। जिसमें से कुछ मूर्तियां आज भी यहां के शिव मंदिर के एक कोने में एकत्रित कर रखी गई है। इन्हीं खुदाइयों के दरम्यान सैकड़ों वर्ष पूर्व खेत में काम करते एक किसान को नीलम पत्थर की एक मूर्ति भी मिली थी। जिसे तत्कालीन हथुआ राज के सहयोग से मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठित कर दिया गया था। जिसकी कीमत करोड़ों में आंकी जाती थी। लेकिन वह भी आज से करीब चौदह वर्ष पूर्व चोरी चली गयी। हालांकि बाद में पुलिस ने उसे बरामद किया, जो आज भी भोरे थाने में रखी गई है। मान्यता तो यह भी है कि भोरे के भुरेश्वरनाथ का मंदिर भूमिश्रवा ने ही बनाया था। जिसके भग्नावशेष वर्तमान शिवमंदिर से सटे पश्चिम में आज भी मौजूद है। भोरे के 25-30 किमी के परिधि का अवलोकन करने पर कई अन्य ऐसे स्थान है, जो इसकी ऐतिहासिकता को पुष्ट करते हैं। यहां से करीब 25 किमी की दूरी पर 'दोन' नामक स्थान है, जो महाभारत कालीन द्रोणाचार्य का गढ़ बतलाया जाता है। जहां पर एक विशाल टीला अपनी ऐतिहासिकता की निशानी के रूप में आज भी मौजूद है। भोरे के दक्षिण तकरीबन 20 किमी पर मझौली राज है, वहां दक्षिण में अश्वस्थामा की कुटी बतायी जाती है। हालांकि यूपी में पड़ने वाले मझौली राज के इस स्थान को वहां की सरकार ने पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया है। ऐसे में रामगढ़वा और उसके आसपास के एतिहासिक स्थल भी अब उस उद्धारक की राह देख रहे हैं, जो उसे प्राचीन गौरव को फिर से सहेज सके।

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