Thursday, July 21, 2011

बुराइयों से मुक्ति

एक डाकू रोज डाका डालता, किंतु धीरे-धीरे वह अपने इस जीवन से परेशान हो गया. वह एक दिन गुरुनानक के पास गया और उनके चरणों में गिरकर बोला- महाराज! मैं अपने जीवन से तंग आ गया हूं, जाने कितनों को मैंने लूटकर दुखी किया है। आप ही मुझे कोई मार्ग बताइए, जिससे मैं इस बुराई से बच सकूं.

नानक ने स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरा और बोले- इसमें कौन सी बड़ी बात है? तुम बुराई करना छोड़ दो तो उससे बच जाओगे.

डाकू ने उनकी बात सुनी और कहा- अच्छी बात है. मैं कोशिश करूंगा। थोड़े दिन बाद वह पुन: लौटकर गुरुनानक के पास आया और बोला- गुरुजी! मैंने बुराई को छोड़ने का बहुत प्रयास किया, किंतु नहीं छोड़ पाया. मैं अपनी आदत से लाचार हूं .मुझे और कोई उपाय बताएं.

नानक ने कहा- ऐसा करो कि तुम्हारे मन में जो भी बात उठे, उसे कर डालो, किंतु रोज के रोज उसे दूसरे लोगों से कह दो.
डाकू बहुत प्रसन्न हुआ कि अब वह बेधड़क डाका डालेगा और दूसरों से कहकर मन हल्का कर लेगा.

कुछ दिन बीतने पर वह फिर गुरुनानक के पास पहुंचा और बोला- गुरुजी! बुरा काम करना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है दूसरों के सामने अपनी बुराइयों को कहना. इसलिए दोनों में से मैंने आसान रास्ता चुना है. डाका डालना ही छोड़ दिया है.

बुराइयों को स्वीकार करने से बेहतर उनका त्याग है, क्योंकि स्वीकार से मन हल्का तो होता है, किंतु अपराधी भाव से पूर्णत: मुक्ति नहीं मिल पाती और यह मुक्ति त्याग में ही निहित है.

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